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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
|संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
}}
{{KKCatKavita}}<poem>लहर रही शशिकिरण चूम निर्मल यमुनाजल,<br>चूम सरित की सलिल राशि खिल रहे कुमुद दल<br><br>
कुमुदों के स्मिति-मन्द खुले वे अधर चूम कर,<br>बही वायु स्वछन्द, सकल पथ घूम घूम कर<br><br>
है चूम रही इस रात को वही तुम्हारे मधु अधर<br>जिनमें हैं भाव भरे हुए सकल-शोक-सन्तापहर !<br><br/poem>