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<poem>
:::(१)
ज्येष्ठ! क्रूरता-कर्कशता के ज्येष्ठ! सृष्टि के आदि!
::वर्ष के उज्जवल प्रथम प्रकाश!
::आओ जीवन-शमन, बन्धु, जीवन-धन!
:::(२)
घोर-जटा-पिंगल मंगलमय देव! योगि-जन-सिद्ध!
::धूलि-धूसरित, सदा निष्काम!
::भर देते हो, बरसाते हैं तब घन!
:::(३)
तेजःपुंज! तपस्या की यह ज्योति--प्रलय साकार;
::उगलते आग धरा आकाश;
::सिद्ध! काँपती है यह माया सारी।
:::(४)
शाम हो गई, फैलाओ वह पीत गेरुआ वस्त्र,
::रजोगुण का वह अनुपम राग,
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