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पौने दो घंटे / निशांत

65 bytes removed, 10:38, 12 अक्टूबर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=निशांत
}} {{KKCatKavita‎}}<poem>आधा घंटा चुरा लिया है मैंने सुबह के समय में समाचार-पत्र पढ़ने के लिए
आधा एक घंटा <br>चुरा लिया है मैंने सुबह दोपहर की कार्यावधि के समय में <br>बीच से समाचार-पत्र कहानियों को पढ़ने के लिए <br><br>
एक घंटा पन्द्रह मिनट और चुरा लिया है लिए हैं मैंने <br>दोपहर की कार्यावधि के बीच अपनी नींद से <br>कहानियों को पढ़ने कविताओं के लिए <br><br>
पन्द्रह मिनट और चुरा लिए हैं मैंने <br>इस तरह अपनी नींद पंखे की तरह दौड़ती हुई ज़िन्दगी में से <br>कविताओं प्रतिदिन चुरा लेता हूँ मैं पौने दो घंटे क़िताबों के लिए <br><br>
इस तरह <br>पंखे की तरह दौड़ती हुई ज़िन्दगी में से <br>प्रतिदिन चुरा लेता हूँ मैं <br>पौने दो घंटे क़िताबों के लिए <br><br> इन पौने दो घंटे ही <br>रहता हूँ मैं मनुष्य <br>बाक़ी समय पंखा, रेलगाड़ी, हवाई जहाजजहाज़, कंप्यूटर <br>और ई-मेल में तब्दील रहता हूँ <br>एक गंतव्य से दूसरे <br>और दूसरे से फिर-फिर पहले की तरफ़ <br>दौड़ लगाते हुए <br><br/poem>
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