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|रचनाकार=अटल बिहारी वाजपेयी
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{{KKCatKavita}}<poem>आज़ादी का दिन मना,<br>नई ग़ुलामी बीच;<br>सूखी धरती, सूना अंबर,<br>मन-आंगन में कीच;<br>मन-आंगम में कीच,<br>कमल सारे मुरझाए;<br>एक-एक कर बुझे दीप,<br>अंधियारे छाए;<br>कह क़ैदी कबिराय<br>न अपना छोटा जी कर;<br>चीर निशा का वक्ष<br>
पुनः चमकेगा दिनकर।
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