भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्र दास
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
उसके हाथ में तीन इक्के थे
उसने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया
और जीत की खुशी में इतनी जोर से चीखा
कि उसकी नींद खुल गई
और पाया कि,
वह पड़ा है असहाय और एकांत
हो गया खामोश। ख़ामोश। हरा हारा हुआ जुआरी बार-बार हरने हारने बावजूद
देखता है सपने जीत के
इस तरह हो जाता है, धीरे-धीरे , बेखबर बेख़बर हकीकत हक़ीक़त की दुनिया से ।</poem>