भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
[[Category:पद]]
<poem>
अब कै माधव, मोहिं उधारि।
 
मगन हौं भव अम्बुनिधि में, कृपासिन्धु मुरारि॥
 
नीर अति गंभीर माया, लोभ लहरि तरंग।
 
लियें जात अगाध जल में गहे ग्राह अनंग॥
 
मीन इन्द्रिय अतिहि काटति, मोट अघ सिर भार।
 
पग न इत उत धरन पावत, उरझि मोह सिबार॥
 
काम क्रोध समेत तृष्ना, पवन अति झकझोर।
 
नाहिं चितवत देत तियसुत नाम-नौका ओर॥
 
थक्यौ बीच बेहाल बिह्वल, सुनहु करुनामूल।
 
स्याम, भुज गहि काढ़ि डारहु, सूर ब्रज के कूल॥
</poem>
भावार्थ :- संसार-सागर में माया अगाध जल है , लोभ की लहरें हैं, काम वासना का मगर है,
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,333
edits