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कहियौ जसुमति की आसीस / सूरदास

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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग नट
  <poem>
कहियौ जसुमति की आसीस।
 
जहां रहौ तहं नंदलाडिले, जीवौ कोटि बरीस॥
 
मुरली दई, दौहिनी घृत भरि, ऊधो धरि लई सीस।
 
इह घृत तौ उनहीं सुरभिन कौ जो प्रिय गोप-अधीस॥
 
ऊधो, चलत सखा जुरि आये ग्वाल बाल दस बीस।
 
अबकैं ह्यां ब्रज फेरि बसावौ सूरदास के ईस॥
</poem>
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