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खेलत नंद-आंगन गोविन्द / सूरदास

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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग आसावरी
राग आसावरी <poem>
खेलत नंद-आंगन गोविन्द।
 
निरखि निरखि जसुमति सुख पावति बदन मनोहर चंद॥
 
कटि किंकिनी, कंठमनि की द्युति, लट मुकुता भरि माल।
 
परम सुदेस कंठ के हरि नख,बिच बिच बज्र प्रवाल॥
 
करनि पहुंचियां, पग पैजनिया, रज-रंजित पटपीत।
 
घुटुरनि चलत अजिर में बिहरत मुखमंडित नवनीत॥
 
सूर विचित्र कान्ह की बानिक, कहति नहीं बनि आवै।
 
बालदसा अवलोकि सकल मुनि जोग बिरति बिसरावै॥
</poem>
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