भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एसी मूढता या मन की / तुलसीदास

19 bytes added, 00:47, 26 अक्टूबर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}<poem>एसी मूढता या मन की।
परिहरि रामभगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की।
धूम समूह निरखि-चातक ज्यौं, तृषित जानि मति धन की।
टूटत अति आतुर अहार बस, छति बिसारि आनन की।
कहं लौ कहौ कुचाल कृपानिधि, जानत हों गति मन की।
तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दुख, करहु लाज निज पन की।</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,333
edits