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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
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जानकी जीवन की बलि जैहों।
चित कहै, राम सीय पद परिहरि अब न कहूँ चलि जैहों॥१॥
नातो नेह नाथसों करि सब नातो नेह बहैहों।
यह छर भार ताहि तुलसी जग जाको दास कहैहों॥४॥
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