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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
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मैं एक, अमित बटपारा। कोउ सुनै न मोर पुकारा॥
भागेहु नहिं नाथ! उबारा। रघुनायक करहु सँभारा॥
कह तुलसिदास सुनु रामा। लूटहिं तसकर तव धामा॥
चिंता यह मोहिं अपारा। अपजस नहिं होइ तुम्हारा॥
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