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Kavita Kosh से
::::हम ऐसे आज़ाद, हमारा
::::::झंडा है बादल!
चांदी, सोने, हीरे, मोती
::से सज सिंहासन,
जो बैठा करते थे उनका
::खत्म हुआ शासन,
::::उनका वह सामान अजायब-
::::::घर की अब शोभा,
उनका वह इतिहास महज
::इतिहासों का वर्णन;
::::नहीं जिसे छू कभी सकेंगे
::::::शाह लुटेरे भी,
::::तख़्त हमारा भारत माँ की
::::::गोदी का शाद्वल!
::::हम ऐसे आज़ाद, हमारा
::::::झंडा है बादल!
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