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|संग्रह=झंकार / मैथिलीशरण गुप्त
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निर्बल का बल राम है।
हृदय ! भय का क्या काम है।।
निर्बल का बल राम वही कि पतित-पावन जोपरम दया का धाम है,इस भव – सागर से उद्धारकतारक जिसका नाम है।<br>हृदय ! , भय का क्या काम है।।<br><br>
राम वही कि पतित-पावन जो<br>परम दया का धाम है,<br>इस भव – सागर से उद्धारक<br>तारक जिसका नाम है।<br>हृदय, भय का क्या काम है।।<br><br> तन-बल, मन-बल और किसी को<br>धन-बल से विश्राम है,<br>हमें जानकी – जीवन का बल<br>निशिदिन आठों याम है।<br>हृदय, भय का क्या काम है।।<br/poem>
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