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घूस माहात्म्य / काका हाथरसी

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|रचनाकार=काका हाथरसी
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[[Category:हास्य रस]]
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कभी घूस खाई नहीं, किया न भ्रष्टाचार
 
ऐसे भोंदू जीव को बार-बार धिक्कार
 
बार-बार धिक्कार, व्यर्थ है वह व्यापारी
 
माल तोलते समय न जिसने डंडी मारी
 
कहँ 'काका', क्या नाम पायेगा ऐसा बंदा
 
जिसने किसी संस्था का, न पचाया चंदा
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