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कवि: [[जयशंकर प्रसाद]]
[[Category: भारत महिमाकविताएँ]]
[[Category: जयशंकर प्रसाद]]
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अरुण यह मधुमय देश हमारा।<br>
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा॥<br>
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।<br>
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा॥<br><br> संदर्भ: "भारत महिमा" से