भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आभार-स्वीकार / अजित कुमार

13 bytes removed, 15:16, 1 नवम्बर 2009
|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
‘दर्द’ तुमने कहा जिसको
 
और यों दुखती हुई रग जान ली
 
मैंने अभी तक सहा जिसको ।
 
::उसीको-
 
हाँ, छिपाने के लिये उसको
 
गीत गाये थे,
 
अधूरे और पूरे गीत गाये थे ।
 
जान ही जब लिया तुमने
 
शेष और भला बचा क्या ।
 
दर्द के अतिरिक्त हमने
 
सहा याकि रचा भला क्या ।
 
::कहीं कुछ भी नहीं :
 
::केवल प्यास, केवल आग ।
 
::धब्बे, चिन्ह, बेबस दाग
 
यही थे-
 
जिनको बहाने के लिये आँसू छिपाये थे ।
 
तुम्हींने यह भी कहा था-
 
::‘मिटाने पर मिट न जाये
 
::दर्द यह ऐसा नहीं है ।
 
::शर्त लेकिन एक है-
 
::उस दर्द में मत रमो ।
 
::देखो।
 
::पाल खोलो, उठाओ लंगर,
 
::चलो-
 
::दुखती हुई रग के सदृश यह द्वीप त्यागो ।‘
 
तुम्हींने हमसे कहा था-
 
::‘अरे, जागो ।‘
 
और उस कहने तथा
 
खुद भी बहुत सहने के कारन
 
मुक्ति की जब घड़ी आई-
 
::स्वत: बन्दी बना था जिस द्वीप में
 
::उससे विलग हो, पाल खोले
 
::मुक्त नाविक ने
 
::उधर … उस द्वीप को जाती लहर पर
 
पुष्प अंजलि से बहाये थे ।
 
आज वह सब व्यक्त है
 
जिसको छिपाने के लिये …
 
छिपा देने के लिये कुल गीत गाये थे ।
 
आज सचमुच मुक्त है
 
जिसको बहाने के लिये …
 
बहा देने के लिये आँसू छिपाये थे ।
 
आज तो वह त्यक्त है
 
वह दर्द भी : वह द्वीप भी …
 
वही जिस तक पुष्प अंजलि से बहाये थे ।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits