भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काँपती है / अज्ञेय

23 bytes added, 18:05, 1 नवम्बर 2009
|संग्रह=सन्नाटे का छन्द / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
पहाड़ नहीं काँपता,
 
न पेड़, न तराई;
 
काँपती है ढाल पर के घर से
 
नीचे झील पर झरी
 
दिये की लौ की
 
नन्ही परछाईं।
 
बर्कले
 
नवम्बर १९६९
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits