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Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
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प्राण तुम्हारी पदरज़ फूली
मुझको कंचन हुई तुम्हारे चरणों की यह
अंतर में पराग सी छाई है स्मृतियों की आशा धूली!
प्राण तुम्हारी पदरज़ फूली!
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