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|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}<poem>धुएँ का काला शोर: <br> भाप के अग्निगर्भ बादल: <br> बिना ठोस रपटन में उगते, बढ़ते, फूलते <br> :अन्तहीन कुकुरमुत्ते, <br> न-कुछ की फाँक से झाँक-झाँक, झुक कर <br> :झपटने को बढ़ रहे भीमकाय कुत्ते। <br> अग्नि-गर्भ फैल कर सब लील लेता है। <br> केवल एक तेज—एक दीप्ति: <br> न उस का, न सपने का कोई ओर-छोर: <br> बिना चौंके पाता हूँ कि जाग गया हूँ। <br> भोर... <br/poem>
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