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जन्म-कुंडली / कुंवर नारायण

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{{KKRachna
|रचनाकार=कुंवर नारायण
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>फूलों पर पड़े -पड़े अकसर मैंने   
ओस के बारे में सोचा है –
किरणों की नोकों से ठहराकर
 
ज्योति-बिन्दु फूलों पर
 
किस ज्योतिर्विद ने
 
इस जगमग खगोल की
 
जटिल जन्म-कुंडली बनायी है ?
फिर क्यों निःश्लेष किया
 
अलंकरण पर भर में ?
 एक से शुन्य शून्य तक  
किसकी यह ज्यामितिक सनकी जमुहाई है ?
 
 
 
और फिर उनको भी सोचा है –
 
वृक्षों के तले पड़े
 
फटे-चिटे पत्ते-----
 
उनकी अंकगणित में
 
कैसी यह उधेडबुन ?
हवा कुछ गिनती हैः
 
गिरे हुए पत्तों को कहीं से उठाती
 
और कहीं पर रखती है ।
 
कभी कुछ पत्तों को डालों से तोड़कर
 
यों ही फेंक देती है मरोड़कर ...।
 
 
 
कभी-कभी फैलाकर नया पृष्ठ – अंतरिक्ष-
 
गोदती चली जाती...वृक्ष...वृक्ष...वृक्ष
</poem>
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