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होटल / अरुण कमल

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|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
'''1
 
सब कुछ यही रहता
 
ऎसी ही थाली
 
ऎसी ही कटोरी, ऎसा ही गिलास
 
ऎसी ही रोटी और ऎसा ही पानी;
 
बस थाली के एक तरफ़
 
माँ ने रख दी होती एक सुडौल हरी मिर्च
 
और थोड़ा-सा नमक ।
 
'''2
 
जैसे ही कौर उठाया
 
हाथ रुक गया ।
 
सामने किवाड़ से लगकर
 
रो रहा था वह लड़का
 
जिसने मेरे सामने
 
रक्खी थी थाली ।
</poem>
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