भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूर्य-ग्रहण : 2 / अरुण कमल

24 bytes added, 07:26, 5 नवम्बर 2009
|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
धीरे-धीरे हो गया सर्वग्रास
 
पर एक काला गोल पिण्ड
 
रहा दीप्त
 
विराजता पूरे आकाश में--
 
ग्रहण के बावजूद सूर्य ही रहा सूर्य
 
ग्रहण के बावजूद सूर्य ही होता है सूर्य !
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits