भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
यह चिर अतृप्ति हो जीवन
चिर तृष्णा हो मिट जाना!
:::गूँथे विषाद के मोती:::चाँदी की स्मित के डोरे;:::हों मेरे लक्ष्य-क्षितिज की:::आलोक तिमिर दो छोरें।
</poem>