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Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=अरुणा राय
}}<poem>एक खालीपन है <br>जो परेशान करता है <br>रात दिन <br> <br>
यह <br>उसके होने की खुशी से रौशन <br>खालीपन नहीं है <br>जिसमें मैं हवा सी हल्की हो <br>भागती-दौड़ती <br>उसे भरती रह सकती हूं <br> <br>
यह <br>उसके ना होने से पैदा <br>एक ठोस और अंधेरा खालीपन है <br>जो अपने भीतर <br>धंसने नहीं देता मुझे <br> <br>
इस खालीपन को <br>अपनी हंसी से <br>गुंजा नहीं सकती मैं <br> <br>
इसमें तो <br>मेरी रूलाई की भी <br>रसाई नहीं <br> <br>
यह <br>ना हंसने देता है <br>ना रोने <br>बस <br>एक अनंत उदासी में <br>गर्क होने को <br>छोड़ जाता है <br>
तन्हा ...
</poem>