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'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार : =नरेन्द्र मोहन''' }}{{KKCatKavita‎}}<poem>
माँ के उरोज़ों के बीच
 
बहती-लहराती नदी में
 
डूबता-उतराता रहता था
 
बचपन में
 
आज मैं साठ की दहलीज पर हूँ
 
कई तीखी-गहरी, मदमाती-उफनती नदियाँ
 
देख चुका हूँ
 
कई नद, नाले, पहाड़
 
लाँघ चुका हूँ
 
आज न माँ है न नदी
 
चित्र है नदी का और
 
माँ याद आती है !
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