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|रचनाकार =नरेन्द्र मोहन
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आगे देखते हुए
 
पीछे देखना
 
और पीछे देखते हुए
 
आज को फलांग
 
आगे की अटकलें
 
एक हिक़मत
 
पीछे त्रास, सामने लोभ और
 
आगे 'कुछ भी नहीं' का अंधेरा
 
स्मृति एक तार है
 
आगे-पीछे खिंचता
 
टूटता-टूटता
 
न टूटता
 
कोई अज्ञात संकेत या आशंका
 
इतिहास के खेल में
 
स्मृति
 
एक हादसा ।
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