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चुप हो तुम / अरुणा राय

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|रचनाकार=अरुणा राय
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<poem>
चुप हो तुम
तो
हवाएं चुप हैं
चुप हो तुम<br>खामोशी की चील तो<br>काटती है हवाएं चुप हैं<br><br>चक्कर दाएं... बाएं
खामोशी की चील<br>काटती है<br>चक्कर<br>दाएंलगाती हूं आवाज... बाएं<br><br> पर फर्क नहीं पड़ता
लगाती हूं आवाज... <br><br>पर <br>फर्क नहीं पड़ता<br>बदहवासी
बदहवासी<br> पैठती जाती है<br>भीतर... <br><br/poem>
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