भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
}}
{{KKCatKavita}}<poem>फिर एक दिन ऐसा आयेगा<br>आँखों के दिये बुझ जायेंगे<br>हाथों के कँवल कुम्हलायेंगे<br><br>
और बर्ग-ए-ज़बाँ से नतक़-व-सदा<br>की हर तितली उड़ जायेगी<br><br>
इक काले समन्दर की तह् में<br>कलियों की तरह से खिलती हुई<br>फूलों की तरह से हँसती हुई<br>सारी शक्लें खो जायेंगी<br><br>
ख़ून की गर्दिश दिल की धड़कन<br>सब रंगीनियाँ सो जायेंगी<br><br>
और नीली फ़ज़ा की मख़मल पर<br>
हँसती हुई हीरे की ये कनी
<br> ये मेरी जन्नत मेरी ज़मीं<br>इस की सुबहें इस की शामें<br>बेजाने हुए बेसमझे हुए<br>इक मुश्त ग़ुबार-ए-इन्साँ पर<br>शबनम की रो जायेंगी<br><br>
हर चीज़ भुला दी जायेगी<br>यादों के हसीं बुतख़ाने से<br>हर चीज़ उठा दी जायेगी<br>फिर कोई नहीं ये पूछेगा<br>'सरदार' कहाँ है महफ़िल में<br><br>
लेकिन मैं यहाँ फिर आऊँगा<br>बच्चों के दहन से बोलूँगा<br>चिड़ियों की ज़बाँ से गाऊँगा<br><br>
 जब बीज हँसेंगे धरती में<br>और कोंपलें अपनी उँगली से<br>मिट्टी की तहों को छेड़ेंगी<br>मैं पत्ती पत्ती कली कली <br> अपनी आँखें फिर खोलूँगा<br>सर सब्ज़ हथेली पर लेकर<br>शबनम के क़तरे तुलूँगा<br>
मैं रंग-ए-हि
ना आहंग-ए-ग़ज़ल<br>अन्दाज़-ए-सुख़न बन जाऊँगा<br>रुख़सार-ए-उरूस-ए-नौ की तरह<br>हर आँचल से छन जाऊँगा<br><br>
जाड़ों की हवायें दामन में<br>जब फ़स्ल-ए-ख़ज़ाँ को लायेंगी<br>रहरू के जवाँ क़दमों के तले<br>सूखे हुए पत्तों से मेरे<br>हँसने की सदायें आयेंगी<br><br>
धरती की सुनहरी सब नदियाँ<br>आकाश की नीली सब झीलें<br>हस्ती से मेरी भर जायेंगी<br><br>
और सारा ज़माना देखेगा<br>
हर क़िस्सा मेरा अफ़सा
ना है<br>हर आशिक़ है सरदार यहाँ<br>हर माशूक़ा सुल्ताना है<br><br>
मैं एक गुरेज़ाँ लम्हा हूँ<br>अय्याम के अफ़्सूँखाने में<br>मैं एक तड़पता क़तरा हूँ<br>मसरूफ़-ए-सफ़र जो रहता है<br>माज़ी की सुराही के दिल से<br>मुस्तक़्बिल के पैमाने में<br><br>
मैं सोता हूँ और जागता हूँ<br>और जाग के फिर सो जाता हूँ<br>सदियों का पुराना खेल हूँ मैं<br>
मैं मर के अमर हो जाता हूँ
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,333
edits