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केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्रमुख कवि हैं। उनका पहला काव्य-संग्रह युग की गंगा आज़ादी के पहले मार्च, 1947 में प्रकाशित हुआ। हिंदी साहित्य के इतिहास को समझने के लिए यह संग्रह एक बहुमूल्य दस्तावेज़ है। केदारनाथ अग्रवाल ने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कवियों में मुखरित किया है। कवि केदार की जनवादी लेखनी पूर्णरूपेण भारत की सोंधी मिट्टी की देन है। इसीलिए इनकी कविताओं में भारत की धरती की सुगंध और आस्था का स्वर मिलता है।
केदारनाथ अग्रवाल के प्रमुख कविता संग्रह है : (1) युग की गंगा, (2) फूल नहीं, रंग बोलते हैं, (3) गुलमेंहदी, (4) हे मेरी तुम!, (5) बोलेबोल अबोल, (6) जमुन जल तुम, (7) कहें केदार खरी खरी, (8) मार प्यार की थापें आदि।
श्री केदारनाथ अग्रवाल अग्रवाल द्वारा यात्रा संस्मरण '''बस्ती खिले गुलाबों की''' ()
उपन्यास '''पतिया''' () '''बैल बाजी मार ले गये''' ()तथा निबंध संग्रह '''समय समय पर'''(1970)
'''विचार बोध'''(1980) '''विवेक विवेचन''' (1980) भी लिखे गये हैं