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{{KKRachna
|रचनाकार=बशीर बद्र
|संग्रह=आस / बशीर बद्र
}}
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<poem>
वक़्ते-रुख़सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए
हार पहनाने मुझे फूल से बाजू आए
बस गई है मेरे अहसास में ये कैसी महक
कोई ख़ुशबू मैं लगाऊँ, तेरी ख़ुशबू आए
इन दिनों आपका आलम भी अजब आलम है
तीर खाया हुआ जैसे कोई आहू आए
उसकी बातें कि गुलोलाला पे शबनम बरसे
सबको अपनाने का उस शोख़ को जादू आए
उसने छूकर मुझे पत्थर से फिर इन्सान किया
मुद्दतों बाद मेरी आँखों में आँसू आए
(१९९२)
</poem>
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|संग्रह=आस / बशीर बद्र
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वक़्ते-रुख़सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए
हार पहनाने मुझे फूल से बाजू आए
बस गई है मेरे अहसास में ये कैसी महक
कोई ख़ुशबू मैं लगाऊँ, तेरी ख़ुशबू आए
इन दिनों आपका आलम भी अजब आलम है
तीर खाया हुआ जैसे कोई आहू आए
उसकी बातें कि गुलोलाला पे शबनम बरसे
सबको अपनाने का उस शोख़ को जादू आए
उसने छूकर मुझे पत्थर से फिर इन्सान किया
मुद्दतों बाद मेरी आँखों में आँसू आए
(१९९२)
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