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वे बच्चे / अशोक वाजपेयी

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|रचनाकार=अशोक वाजपेयी
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प्रार्थना के शब्दों की तरह
पवित्र और दीप्त
वे बच्चे
प्रार्थना के शब्दों की तरह<br>उठाते हैं अपने हाथ¸पवित्र और दीप्त<br>अपनी आंखें¸अपना नन्हा–सा जीवनउन सबके लिएजो बचाना चाहते हैं पृथ्वी¸जो ललचाते नहीं हैं पड़ोसी सेजो घायल की मदद के लिएवे बच्चे<br>रुकते हैं रास्ते पर।
उठाते हैं अपने हाथ¸<br>अपनी आंखें¸<br>अपना नन्हा–सा जीवन<br>उन सबके लिए<br>जो बचाना चाहते हैं पृथ्वी¸<br>जो ललचाते नहीं हैं पड़ोसी से<br>जो घायल की मदद के लिए<br>रुकते हैं रास्ते पर।<br> बच्चे उठाते हैं<br>अपने खिलौने<br>उन देवताओं के लिए–<br>जो रखते हैं चुपके से<br>बुढ़िया के पास अन्न¸<br>चिड़ियों के बच्चों के पास दाने¸<br>जो खाली कर देते हैं रातोंरात<br>बेईमानों के भंडार<br>वे बच्चे प्रार्थना करना नहीं जानते<br>वे सिर्फ़ प्रार्थना के शब्दों की तरह<br>पवित्र और दीप्त<br>उठाते हैं अपने हाथ।<br/poem>
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