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हम / अशोक वाजपेयी

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|संग्रह=कहीं नहीं वहीं / अशोक वाजपेयी
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<poem>
हम उस मंदिर में जायेंगे
जो किसी ने नहीं बनाया
शताब्दियों पहले
हम प्रणाम करेंगे उस मंदिर में जायेंगे<br>देवता कोजो किसी ने नहीं बनाया<br>शताब्दियों थोड़ी देर पहले<br><br>हमारे साथ चाय की दूकान परअखबार पलट रहा था
हम प्रणाम करेंगे उस देवता जंगल के सुनसान को<br>भंग किये बिनाजो थोड़ी देर पहले<br>झरने के पास बैठकरहमारे साथ चाय सुनेगे पक्षियों-पल्लवों-पुष्पों की दूकान पर<br>अखबार पलट रहा था<br><br>प्रार्थनाएँ
फिर हम जंगल के सुनसान धीरे-धीरेआकाशमार्ग से वापस लौट जायेंगेकि किसी को भंग किये बिना<br>याद ही न रहेझरने के पास बैठकर<br>कि हम थे, जंगल थासुनेगे पक्षियों-पल्लवोंमंदिर और देवता थेप्रणति थी-पुष्पों की प्रार्थनाएँ<br><br>
फिर हम धीरे-धीरे<br>कोई नहीं देख पायेगाआकाशमार्ग हमारा न होनाजैसे प्रार्थना में डूबी भीड़ से वापस लौट जायेंगे<br>कि किसी लोप हो गये बच्चों को याद ही न रहे<br>कि हम थे, जंगल था<br>मंदिर और देवता थे<br>प्रणति थीकोई नहीं देख पाता-<br><br>
कोई सब कुछ छोड़कर नहीं देख पायेगा<br>हमारा न होना<br>जैसे प्रार्थना में डूबी भीड़ से<br>लोप हो गये बच्चों को<br>कोई नहीं देख पाता-<br><br>
हम सब कुछ छोड़कर यहाँ से नहीं<br><br>जायेंगे
हम सब कुछ छोड़कर<br>यहाँ से नहीं साथ ले जायेंगे<br><br>जीने की झंझट, घमासान और कचरासुकुमार स्मृतियाँ, दुष्टताएँऔर कभी कम न पड़नेवाले शब्दों का बोझ।
साथ ले जायेंगे<br>जीने हरियाली और उजास की झंझट, घमासान और कचरा<br>छबियाँसुकुमार स्मृतियाँ, दुष्टताएँ<br>अप्रत्याशित अनुग्रहों का आभारऔर कभी कम न पड़नेवाले शब्दों का बोझ।<br><br>जो कुछ भी हुए पाप-पुण्य।
हरियाली और उजास की छबियाँ<br>समय-असमय याद आनेवाली कविताएँअप्रत्याशित अनुग्रहों का आभार<br>और जो कुछ भी हुए पापबचपन के फूल-पुण्य।<br><br>पत्तियों भरे हरे सपनेअधेड़ लालसाएँभीड़ में पीछे छूट गये, बच्चे का दारुण विलाप।
समय-असमय याद आनेवाली कविताएँ<br>बचपन के फूल-पत्तियों भरे हरे सपने<br>अधेड़ लालसाएँ<br>भीड़ में पीछे छूट गये, बच्चे का दारुण विलाप।<br><br> दूसरों की जिन्दगी में<br>दाखिल हुए अपने प्रेम और चाहत के हिस्सों<br>और अपने होने के अचरज को<br>साथ लिये हम जायेंगे।<br>हम सब कुछ छोड़कर<br>यहाँ से नहीं जायेंगे।<br/poem>
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