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[[Category:गज़ल]]
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वहशत-ए-दिल सिला-ए-आबलापाई ले ले
मुझसे या रब मेरे लफ़्ज़ों की कमाई ले ले
वहशत-ए-अक़्ल हर बार दिखाती थी जले हाथ अपनेदिल सिला-ए-आबलापाई ले ले<br>मुझसे या रब मेरे लफ़्ज़ों की कमाई ने हर बार कहा आग पराई ले ले<br><br>
अक़्ल हर बार दिखाती थी जले हाथ अपने<br>मैं तो उस सुबह-ए-दरख़्शाँ को तवन्गर जानूँदिल ने हर बार कहा आग पराई जो मेरे शहर से कश्कोल-ए-गदाई ले ले<br><br>
मैं तो उस सुबह-ए-दरख़्शाँ को तवन्गर जानूँ<br>तू ग़नी है मगर इतनी हैं शरायत मेरीये मोहब्बत जो मेरे शहर से कश्कोल-ए-गदाई हमें रास न आई ले ले<br><br>
तू ग़नी है मगर इतनी हैं शरायत मेरी<br>ये मोहब्बत जो हमें रास न आई ले ले<br><br> अपने दीवान को गलियों मे लिये फिरता हूँ<br>है कोई जो हुनर-ए-ज़ख़्मनुमाई ले ले<br><br/poem>
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