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{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>तुम बिन जीवन एसा
जैसे घर को लूट लुटेरे, जाते आग लगा कर जायें
जैसे इतनी बरसे बरखा, विप्लव हो
और उस पर जा कर बाँध कोई ढह जाये
जैसे चक्रवात के गुजरे पीछे वीराना होता है
जैसे रात चाँदनी क्या है, अंधा पूछ रहा होता है
जैसे मरे प्यास से कोई, बारिश उसकी चिता बुझा दे
जैसे हाँथ बाँध कर ज़िन्दा मुझको कोई आग लगा दे
जैसे डोब रखे पानी में कोई, जब तक मर न जाऊं
जैसे मौत माँगता भटकूं और हर बार बचाया जाऊं
जैसे सपना देख तुम्हारा, आँखें खोलूं वीराना हो
जैसे विरह का अफसाना हो, हँसता गाता दीवाना हो
जैसे कि खंडहर में तुम्हें दी हुई पुकार
मुझ तक ही लौट आती है हर बार, बार बार
जैसे कि लूट ले दुल्हन की पालकी कहार
तुम बिन जीवन एसा जैसे
जीवन कोई उधार..

30.10.2000</poem>
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