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{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
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}}
{{KKCatKavita}}<poem>मर गये आदमी, एक खबर बन गयी

जल गयी लाश थी कोई पत्थर हुआ
क्या संभाले उसे, क्या करेंगे दुआ
ज़िंदगी आँख में रुक गयी काँच बन
और हाँथों की हर फूटती चूडियाँ
इसमें भी है खबर, कैमरे की नज़र
चीखती अधमरी की तरफ तन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी

जिसने फोडा था बम उसका ईमान क्या
उफ पिशाचों से बदतर वो हैवान था
हो कि हूजी, सिमि या कि लश्कर कोई
कैसे खुफिया हैं क्यों तंत्र अंजान था
लोकशाही में आलू तो मँहगा हुआ
आदमी की रही कोई कीमत नहीं
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी

वो पहन कर के खादी निकल आयेंगे
उंगलियों को उठा कर के चिल्लायेंगे
चुप हैं घडियाल सूखी नदी देख लो
उनकी आँखों से आँसू निकल आयेंगे
जो बचाते हैं अफज़ल को इस देश में
वो हैं कारण अमन की कबर बन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी

मुझको अफसोस मेरे गुलाबी शहर
तेरे सीने में नश्तर, लहू का कहर
अब सियासी बिसातों की सौगात बन
फैलता जायेगा हर डगर एक ज़हर
हादसे पर सिकेंगी बहुत रोटियाँ
देख गिद्धों की कैसी नज़र बन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी

14.05.2008
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जयपुर में हुए आतंकवादी हमले के बाद।
</poem>
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