भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=ठहरा हुआ एहसास / इला कुमार
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
विस्तृत खोखल पर
अपने पद चिन्हों को उकेरते
ओ दिव्य पुरुष,
तुझे नमस्कार!
सैकडों योजन लंबी रश्मियों की ये बाहें
आओ,
छू लो मुझे
मेरे चेहरे को, वजूद को
घेर मुझे अपरिवर्तित अवगुंठन के जादू से,
सारे परिवेश को रौशन कर दो
नई आशाओं के प्रवाह से
भर दो मेरे मन में सपनीली किरणों का जाल
उन्मीलित हो उठे स्वप्नों का छंद खिले उठे दबी
ढंकी कामना
तुमने जैसे पाया अद्भुतचरित का संधान
बताओ
जगद्गुरु !
मुझे
उसी पथ की बात
कैसे करना होगा स्वयं अपने से ही
इस 'स्व' का परित्राण
</poem>