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प्राणों के अन्तिम पाहुन!
चांदनी-धुला, अंजन सा, विद्युतमुस्कान बिछाता,
सुरभित समीर पंखों से उड़ जो नभ में घिर आता,
तेरी छाया में दिव को हँसता है गर्वीला जग,
तू एक अतिथि जिसका पथ है देख रहे अगणित दृग,
::::सांसों में घड़ियाँ गिन गिन।
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