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उसकी हँसी / आर. चेतनक्रांति

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|संग्रह=शोकनाच / आर. चेतनक्रांति
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एक मर्द हँसा
 
हँसा वह छत पर खड़ा होकर
 
छाती से बनियान हटाकर
 
फिर उसने एक टाँग निकाली
 
और उसे मुंडेर पर रखकर फिर हँसा
 
हँसा एक मर्द
 
मुट्ठियों से जाँघें ठोंकते हुए एक मर्द हँसा
 
उसने हवा खींची
 
गाल फुलाए और
 
आँखों से दूर तक देखा
 
फिर हँसा
 
हँसा वह मर्द
 
मुट्ठियाँ भींचकर उसने कुछ कहा
 
और फिर हँसा
 
सूरज डूब रहा था धरती उदास थी ।
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