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Kavita Kosh से
|रचनाकार = आलोक धन्वा
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रात के आवारा
मेरी आत्मा के पास भी रुको
मुझे दो ऐसी नींद
जिस पर एक तिनके का भी दबाव ना हो
जैसे चांद में पानी की घास
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