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Kavita Kosh से
जो कष्ट दूसरे के हैं ओढ़ लिया करते
वह कष्ट नहीं होता, आनन्द कहाता है,
कहने वाले कहते, वह पीड़ा भुगत रहा
उस पीड़ा में भी वह मिठास ही पाता है।
हम व्यक्ति राष्ट्र या फिर समाज के दुख बाँटे
अनुभूति नहीं फिर दुख की कोई भी करता
वह यही गर्व करता, मैं नहीं अकेला हूँ
वह तो सुख का अनुभव करता, जो दुख हरता ।
हम अगर किसी का धन बाँटें, दुख पाएँगे
हम कष्ट किसी के बाँटे, मन को सुख होगा
सुख के बाँटे सुख मिलता, दुख के बाँटे दुख
यह नियम प्रकृति का अटल, न कभी विमुख होगा।
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