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मुनगा / त्रिलोचन

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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>इतने सारे फूल,
डालें, टहनियाँ भार से
झुकी झुकी पड़ती हैं
लगता है अब टूटीं, बस टूटीं
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कहा था रहीम नें
सहिजन अति फूलै तऊ
डार पात की हानि।

बखरी में जो जनमें
उनके कई नाम होते हैं
सहिजन को मुनगा भी कहते हैं
फूल की अधिकाई से क्या हुआ
उसकी तो कहीं कोई चर्चा नहीं करता
लाँबी खाँबी फलियाँ
रसोई में पहुँचती हैं।

9.11.2002</poem>
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