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|सारणी=मधुशाला / हरिवंशराय बच्चन
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वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला,<br>
जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबिंबत प्रतिपल, वह मेरा प्याला,<br>