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धर्म / रामधारी सिंह "दिनकर"

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::(२)
सिकता के कण में मिला विश्व संचित सारा,
::प्रच्छन्न पुष्प में देवों का संसार मिला।
मुट्ठी मे भीतर बन्द मिला अम्बर अनन्त,
::अन्तर्हित एक घड़ी में काल अपार मिला।
::(३)
अज्ञात, गहन, धूमिल के पीछे कौन खड़े
::शासन करते तुम जगद्व्यापिनी माया पर?
दिन में सूरज, रजनी में बन नक्षत्र कौन
::तुम आप दे रहे पहरा अपनी छाया पर?
::(४)
बहुत पूछा, मगर, उत्तर न आया,::अधिक कुछ पूछ्ने में और ड़रते हैं।असंभव है जह
::(५)
::(६)
</poem>
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