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::सुनो अब भी सूखी टहनियों पर
::चमकता है वह हलका आलोक-जल
::अब भी ठहरा हुआ है::उत्सव-स्पर्श वह::सुनो अगर शस्य की::प्रतीक्षा विफल थी::तो क्या-
'''रचनाकाल : 1959'''
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