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Kavita Kosh से
|रचनाकार=ॠतुराज
}}
{{KKCatKavita}}<poem>द्वार के भीतर द्वार द्वार और द्वार
और सबके अंत में एक नन्हीं मछली
जिसे हवा की ज़रूरत है प्रत्येक द्वार में अकेलापन भरा है प्रत्येक द्वार में
प्रेम का एक चिह्न है
जिसे उल्टा पढ़ने पर मछली मछली नहीं रहती है आँख हो जाती है आँख आँख नहीं रहती है आँसू बनकर चल देती है बाहर हवा की तलाश में</poem>