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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }}<poem>लिखूँ तो क्या लिखूँ। लंबे सम…
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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}<poem>लिखूँ तो क्या लिखूँ।
लंबे समय से सब कुछ ही गोलमाल लगता रहा है।
जो ठीक लगता है, वह ठीक है क्या?
जो गलत वह गलत?
शायद ऐसे ही समय में
ईश्वर जन्म लेता है।</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}<poem>लिखूँ तो क्या लिखूँ।
लंबे समय से सब कुछ ही गोलमाल लगता रहा है।
जो ठीक लगता है, वह ठीक है क्या?
जो गलत वह गलत?
शायद ऐसे ही समय में
ईश्वर जन्म लेता है।</poem>