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सबको जेल में डाल दो / लाल्टू

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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}<poem>हम सबको बंद कर लो, सरकार बहादुर
हम सब कभी कभी गलती से भले खयाल सोच लेते हैं।
हमने जेल में नक्सलियों से मुलाकात नहीं की
गाँधी को भी नहीं देखा, पर क्या करें जनाब
आते जाते इधर उधर की चर्चियाते
कोई न कोई अच्छी बात दिमाग में आ ही जाती है।
साँईनाथ, अरुंधती राय, अग्निवेश अभी बाहर खड़े हैं,
हममें से कोई कुछ पढ़ा रहा है, कोई गीत गा रहा है,
कोई और कुछ नहीं तो मंदिर मस्जिद जा रहा है।
हम सबको बंद कर लो, सरकार बहादुर
हम सब देश के लिए खतरनाक हैं

हमें गरीबी पसंद नहीं, पर गरीब पसंद हैं
हम यह तो नहीं सोचते कि गरीबों को पंख लग जाएँ
पर यह चाहते हैं कि गरीब भी इतना खा सकें कि
वे कविताएँ पढ़ने लगें
इतनी खतरनाक बात है यह
कानून की नई धाराएँ बनाइए मालिक
हमें बाहर न रखें, देश को देश से बचाएँ
बहुत बड़ा सा जेल बनाएँ, जिसमें हमारे अलावा
आस्मान भी समा जाए, इतनी रोशनी
न होने दो सरकार कि किसी को
दाढ़ी वाली मुस्कराती शक्ल दिख सके।
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