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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= शकील बादायूंनी}}<poem>इन्साफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के<br/>ये देश है तुम्हारा, नेता तुम ही हो कल के<br />
दुनियाँ के रंज सहना और कुछ ना मुँह से कहना<br />सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना<br />रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के<br />
अपने हों या पराये, सब के लिए हो न्याय<br />देखो कदम तुम्हारा, हरगि‍ज ना डगमगाए<br />रस्ते बडे कठि‍न हैं, चलना संभल-संभल के<br />
इन्सानियत के सर पे, इज्जत का ताज रखना<br />तन मन की देकर भेंट, भारत की लाज रखना<br />जीवन नया मिलेगा, अंतिम चिता में जल के<br /poem>
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