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रोशनी / लाल्टू

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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
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<poem>कभी कभी तारों भरा आस्माँ देख
थक जाता हूँ।

इत्ती बड़ी दुनिया
छोटा मैं

फिर खयाल आता है
तारे हैं
क्योंकि वे टिमटिमाते हैं

रोशनी देख सकने की ताकत का अहसास
मुझे एक तारा बनने को कहता है

तब आस्माँ बहुत सुंदर लगता है।</poem>
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