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'''रचनाकार् - मजरु सुलतानपुरी'''
 
 
<poem>
( गुडिया
हमसे रुठी रहोगी
कब् तक् ना हंसोगी
देखो जी कीरन् सी लहर् आ ई
आ ई रे आ ई रे हंसी आ ई
देखो जी कीरन् सी लहर् आ ई
आ ई रे आ ई रे हंसी आ ई ) - 2
गुडिया
 
( झुकी-झुकी पलकों मे आ के
देखो गुप्-चुप् आँखो से झांके
तुम्हारी हंसी
गुप्-चुप् आँखो से झांके ) -२
फिर् भी
अंखीयाँ बन्द् करोगी
 
कब् तक् ना हसोगी
देखो जी कीरन् सी लहर् आ ई
आ ई रे आ ई रे हंसी आ ई ) - 2
गुडिया
 
( अभी-अभी आँखो से छलके
अभी कुछ्-कुछ् होठों पे झलके
तुम्हारी हंसी
कुछ्-कुछ् होठों पे झलके ) -२
फिर् भी
मुख् पे हाथ् धरोगी
 
कब् तक् ना हंसोगी
( देखो जी किरन् सि लहराई
आ ई रे आ ई रे हंसी आ ई ) -२
गुडिया
हमसे रुठी रहोगी
कब् तक् ना हसोगी
( देखो जि किरन् सि लहराई
आ ई रे आ ई रे हंसी आ ई ) -२
</poem>
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